मैं आजाद परींदा सा हूं
एक दिन उड़ जाऊंगा
मैं बहती हवा सा हूं
एक दिन बह चलूंगा
तुम्हारी बंदीशों का जोर, मुझ पर ना चलेगा
तुम्हारी रणजीशों का दौर, मुझ पर ना थमेगा
मैं आजाद पंछी सा हूं
एक दिन मस्त गगन में, लहरा उठूंगा
तुम मुझमें ना समा पाओगे
ना मैं तुमसे बंध पाऊंगा
मैं सूरज की पहली किरण सा हूं
एक दिन ऊंचे आकाश में, चमक उठूंगा
ये बेड़ियां, अब और ना संभाली जायेगी
ये सुर्खियां, अब और ना पाली जायेगी
मैं किसी पेड़ की शीतल छांव सा हूं
एक दिन किसीको शीतलता देकर जाऊंगा
कोई पिंजरा मुझे कैद नहीं कर पायेगा
कोई जंजीरें मुझे बांध नहीं पायेगी
मैं किसी खेत की पहली फसल सा हूं
एक दिन खुली सांस भरे मेहसूस किया जाऊंगा
भले ही तुम मुझसे कभी ना मिले हो
भले ही उस पगदंडी पर, तुमने कभी पैर ना पसारे हो
पर बिन मेरे बारे में सुने, तुम्हारी आंखे तरस जायेगी
बिन मेरे बारे में पढ़े, तुम रह ना पाओगे
मैं दास्तान वहीं पुराना सा हूं
एक दिन बिक चलूंगा
मैं मेला वही भीड़ो से भरा हुआ हूं
एक दिन खो चलूंगा
ना मुझे तुम्हारे जैसा बनना है
ना मुझे अपने जैसा किसीको बनने देना है
मैं शाम में, किसी ढलते सूरज सा हूं
एक दिन मौत की चादर ओढ़े ढल जाऊंगा
ना कोई अब जिंदगी से शिकायत है
कर ली अब मैने खुद ही हिफाजत है
मैं किसी बहते पानी सा हूं
एक दिन समंदर में जाकर राख हो जाऊंगा
मैं ख्वाब पुराना सा हूं
एक दिन दिख चलूंगा
मैं सपना अंजाना सा हूं
एक दिन वाकिफ बन चलूंगा
मैं खुशबू पुरानी सी हूं
एक दिन किसीके बदन को महका चलूंगा
मैं आदत जवानी सी हूं
एक दिन किसी के शोर में शांति की माला परोऊंगा
मैं पूजा के फूल की तरह हूं
एक दिन किसी के काम आ जाऊंगा
मैं मैदान के धूल की तरह हूं
एक दिन फतेह कर लौट आऊंगा
मैं आजाद परींदा सा हूं
एक दिन उड़ जाऊंगा
मैं बहती हवा सा हूं
एक दिन बह चलूंगा
और हां, आखिर में...
मैं किसी शायर की गजल सा हूं
अल्फाज़ बन तुम्हारे होठों पर बस जाऊंगा