जला दिए वो सभी पन्ने
जो थे कभी मेरे अपने
लिख रहा हूं एक अनकही दास्तान
जो है मेरी अपनी जुबान
क्योंकि...
कुछ नया लिखने की तैयारी है
रात सा संवेरा झांकने की बारी है
हाथ जोड़ना भी सीख लिया
हाथ तोड़ना भी सीख लिया
मंजिल मोड़ना भी सीख लिया
और मंजिल पर जाना भी सिख लिया
धीरे धीरे सपनों से मिल रहा हूं
अब कहीं खुदमें ही खो रहा हूं
कभी अपनों से मिल रहा हूं
तो कभी अपनों से जिजक रहा हूं
तो कभी खुदसे ही बिछड़ रहा हूं
चाहे जो भी हो, जैसा भी हो
धीरे धीरे में गुमनामी में सिमट रहा हूं
ये जिंदगी एक रेत सी लगती है
लाख कोशिश करो संभालने की
हाथों के बीच में से निकलती है
कभी शीतल ठंडक देती है
तो कभी आंखों से अंगार बरसाती है
कभी हंसना सिखाती है
तो कभी रोना बतलाती है
कभी आंधियों सा बहना बताती है
अंत में मुसीबतों से जूझना दिखलाती है
बस पानी सा बहता जाना है
कुछ को हकीकत बनाना है
तो कुछ को सपनों में ही पाना है
हो सकता है उतने काबिल न हो हम
जी सके जितना उतना जी जाना है
या तो हार जाना जाना है
या फिर जीतकर लौट आना है
बस एक बूंद की तरह है हम
अंत में फिर से उस दरिया में समा जाना है