जियो कुछ तुम इस कदर
मानो है ये कोई अनंत सफर
जिंदगी तो है बस चार दिन का मेला
ना है कोई और दूजा जमेला
इन चार दिनों में भी क्यूं पालना किसी से बैर
नहीं उगलना अपने मुंह से किसी के लिए भी जैर
आए हो अगर इस दुनिया में तुम
तो, या तो तैर कर उसे महेसूस कर लो
या डूब कर खुदको महेफूज कर लो
चाहो, तो आदित्य से तुम दोस्ती कर लो
या बिन दोस्त बनाए ही तुम खुद से ज्याख्ती कर लो
चाहो, तो भानू की वो पहेली किरण का
तुम आनंद ले लो
या बिस्तर में पड़े, सुहाने सपनों के
तुम खर्राटे ले लो
सुहानी शाम में तुम खुदके साथ रह लो
या बिन बात ही तुम किसी से झगड लो
ढलती शाम में तुम जीना सीख लो
या कल के तनाव में तुम अंगड़ाइयां ले लो
तुम जो भी करो
खुदके साथ करो
खुदसे करो
चाहे मोहब्बत ही करो
लेकिन बेशुमार करो
चाहे अकेले ही रहो
खुदसे मिलने की चाहत रखो
क्योंकि जिंदगी के साथ भी बहुत कुछ है
और जिंदगी के बाद भी बहुत कुछ घटनेवाला है
कुछ यादें यहीं रह जानेवाली है
तो कुछ यादें तुम में सिमटनेवाली है
तो कुछ यादें अनंत बनजानेवाली है
कुछ यादें अनंत बनजानेवाली है