पाठशाला की हर गलियों में
पाठशाला के हर चौबारो में
वह आपको मिल ही जाते हैं
कुछ नए अंदाज में
तो कुछ पुराने ख्यालातों में
वह आपसे भीड़ ही जाते हैं
अक्सर लोग उन्हें समझते
निकम्मे नालायक है
क्योंकि अंदाज हो अपने लाते
नए निराले हैं
वही लोग आगे जाकर
बैक बेंचर्स कहलाते है
नहीं मिलता उन्हें कोई इनाम है
पर बैकबेंचर्स होना ही
अपने आप में एक खिताब है
कुछ शांत तो कुछ घोंघटिये आवाज में
कुछ सुरीले तो कुछ अड़ियल सी गुफ्तगू में मग्न
तो कुछ अपने यारों के यार
पाठशाला की आखिरी पाटली पर
अपनी ही मौज में मस्त
दुनिया से बेफिक्र होकर चलनेवाले
कंधे से कंधा मिलाकर साथ देनेवाले
या कभी कभार अकेले चाहनेवाले
वह आपको मिलने ही वाले हैं
फर्स्ट बेंचर्स के साथ लास्ट बेंचर्स
आपको बोनस में मिलने ही वाले हैं
पाठशाला की वह छत के नीचे
कुछ बनते डॉक्टर तो कुछ बनते इंजीनियर है
पर अगर जिनी हो वाकई में जिंदगी
दुनिया के शोरगुल से दूर
बिना किसी फिक्री के
तो वह आपको यही निकम्मे नालायक
बैक बेंचर्स की सिखाते हैं
अगर बसानी हो जिंदगी, जो है बेहद कीमती
तो वह आपको फर्स्ट बेंचर्स ही सिखाते हैं
लेकिन बनानी हो जिंदगी, जो है बेहद खास
भले ही हो तुम कितने ही नाराज
तो आपको केवल लास्ट बेंचर्स ही सिखाते हैं
पर पता नहीं क्यों...?
लोग फिर भी उन्हीं झूठलाते हैं
फिर भी उन्हें ही झूठलाते हैं
बिना उनके फर्स्ट बेंचर्स का कोई वजूद नहीं
उनके जितना बगीचे में सुंदर, दूजा कोई फूल नहीं
जैसे फूल पूरे तन बदन को महकाते हैं
किसी चिड़िया की भांति, पूरी पाठशाला में चहचहाते हैं
भले ही ना आती हो उन्हें कक्का की रीति
फिर भी जिंदगी की दौड़ में हमेशा आगे ही खड़े मिलेंगे किसी चीते की भांति, किसी चीते की भांति
वो हमेशा आपको दौड़ते ही मिलेंगे
पाठशाला की हर गलियों में
पाठशाला के हर चौबारो में
वह आपको मिल ही जाते हैं
कुछ नए अंदाज में
तो कुछ पुराने ख्यालातों में
वह आपसे भीड़ ही जाते हैं
अक्सर लोग उन्हें समझते
निकम्मे नालायक है
क्योंकि अंदाज हो अपने लाते
नए निराले हैं
वही लोग आगे जाकर
बैक बेंचर्स कहलाते है