जब तक बचपन समझ में आया
वो बिक चुका था
जब तक जवानी समझ में आयी
वो मिट चुकी थी
जब तक बुढ़ापा समझ में आया
वो चारधाम को हो चला था
जब तक जिंदगी समझ में आयी
वो राख बन चुकी थी
ये जिंदगी भी कितनी अजीब है ना
जो हम कल थे वो आज नहीं है
जो आज है वो कल नहीं होंगे
यहां सब के सब लगाते चक्कर है
जिसका ना कोई सर है, ना कोई पैर है
बस बनकर सब यहां घूमते काफिर है
भले ही ना हो वो किसीके काबिल है
वो बचपन ही था...
जिसने हमें हंसना बोलना सिखाया
चाहे कितने ही मुश्किल हालात हो
दो पल में ही सब कुछ भूलना सिखाया
सब छोडछाड़ के बेफिकर होकर
मस्त मगन बन घूमना सिखाया
एक बार गिर गए, तो दोबारा खड़े होना सिखाया
पर गुजरा हुआ कल कभी वापिस नहीं आता
इस बात को स्वीकार करना भी बतलाया
हमारी हर एक झलक में मासूम बनना सिखाया
अपनों की अहमियत का साथ होना सिखाया
जो अपने साथ ना हो, अपने अगर रूठ जाए
अगर अपने नाराज भी हो जाए
तो बड़प्पन दिखाते हुए माफी मांगना भी सिखाया
अपनी भावनाओं को आसुओं में बहा देना भी सिखाया
वो जवानी ही थी...
जिसने हमें कुछ करने के काबिल बनाया
एक के बाद एक मुसीबतों से वाकिफ कराया
चाहे जैसे भी हालात हो
चाहे हमें अच्छा लगे या ना लगे
चाहे हमारी मरजी हो या ना हो
पर हमें हर हालत में चलते ही जाना है
एक के बाद एक मुसीबतों का समाधान देते रहना है
इस तरह से बिन रुके चलते जाना सिखाया
या किसी किसीको
पैसों के पीछे की अंधी दौड़ में भाग लेना सिखाया
तुम्हें जो पसंद है, उसे मारकर कुचल देना सिखाया
चाहे तुम कुछ भी करो, चाहे लड़ो या मरो
लेकिन हर हाल में तुम्हें अव्वल ही आना है
भले ही करना पड़े तुम्हें खून खराबा है
भले ही दिखता वो मौत का इशारा है
इस तरह से जिंदगी को नजर अंदाज करना सिखाया
वह बुढापा ही था...
जिसने कुछ भी हमेशा नहीं रहनेवाला
कुछ भी साथ नहीं जानेवाला
चाहे शरीर हो या जमीर
गरीब हो या अमीर
एक दिन इसी मिट्टी में ढल जाना है
ढलने के बाद एक तारा बन जाना है
या मरने के बाद किसी के काम आ जाना है
या विचारों के जरिए अमर बन जाना है
इस तरह से जिंदगी को देखना सिखाया
दूसरे नजरिए से जिंदगी जीना बताया
चाहे पैसे हो या जवानी
भले ही आए कोई रुत मस्तानी
या राह मिले कोई अलबेली अनजानी
एक दिन सबको ढल ही जाना है
ढलकर बारहवें दिन भुला भी दिया जाना है
इस बात से रूबरू बनना सिखाया
ना किसी पर आश्रित होना सिखाया
हम सब एक नाव में बैठे हुए हैं
एक अनंत नाव में सफर कर रहे हैं
अनजाने मोड़ से गुजर रहे हैं
मनचाहे ढंग से बरस रहे हैं
हम सब एक दूजे में समाए हुए हैं
इसका ना कोई आदि है, ना कोई अंत है
पर फिर भी खुद के होने का घमंड है
एक दिन तो बन जाना सबको राख है
भले ही ना मिले वो, जिसकी तुमको तलाश है
जैसे बचपन के बाद बच्चा होता जवान है
या फिर स्वार्थ में भीगता कोई हैवान है
तो फिर देर किस बात कि
निकल पढ़ो तुम भी
उस मौत के बाद के सफर पर
घूम आओ तुम भी
जन्म और मृत्यु के चक्कर पर
कहो चलो अलविदा अपने आनेवाले कल को
या पास में रहनेवाले किसी चमन को
घूम कर सभी को एक दिन एक हो जाना है
किसी सर्वशक्तिमान में बस, बस जाना है
इस कविता के जरिए
जेपीन को बस यही बतलाना है