एक जंग होती है,
खुदसे खुद तक जुड़ने की
एक जंग होती है
खुदसे खुद तक बिखरने की
जब समज ही नहीं आता
कि आखिर जी क्यों रहे है
रोज किश्तों में मर क्यों रहे है
तब एक जंग शुरू होती है
खुद से खुदको संभालने की
खुद से खुदको मिटाने की
हा, पता है
आज समय थोड़ा खराब है
कल शायद इससे भी खराब हो
पर कभी न कभी ये सिलसिला भी बदलेगा
ये तकलीफों का दौर कभी तो रुकेगा
जब कोई अनजाना शख्स फिर से दस्तक देगा
तब एक जंग शुरू होती है
खुदसे खुदको समझाने की
खुद से खुदको वाकिफ कराने की
पता नहीं,
कब सब ठीक होगा
ये उदास चहेरा फिर से खिलखिलाएगा
ये आसूं भी मुस्क्साएंगे
कड़कड़ाती धूप में भी
ठंडक सा एहसास दिलाएंगे
तब एक जंग फिर से शुरू होती है
खुदसे खुदको मिलाने की
तब एक जंग शुरू होती है
खुदसे खुद तक जाने की
एक बूंद से निकलकर लहर बन जाने की
इस अनंत से दरिया में विलीन हो जाने की