एक ख्वाब सजाओ नजमों में
उसे मुस्कान पे सजा दो
कुछ लब्ज़ चुरा लो गजलों से
उसकी कीमत चुका दो
तूं एक मीठी सी याद बन जा
सुहानी सी शाम बन जा
बिन बादल की बरसात बन
भीगा हुआ सा एहसास बन
या मोर की टहनी बन
बस तू नयनों में बस जा
एक ख्वाब बसाओ आंखों में
उसे अपनी रगों में बसा लो
चाहे अदा अनजानी हो
शरत पुरानी हो
किसी मुकुट की रानी हो
या पहेली बुझानी हो
या घाव रूहानी हो
बस तूं तड़पन बन जा
या अर्पण कर जा खुदको
ऐसा एक ख्वाब बनाओ जीवन को
उसे अपनी रूह में बसा लो
पर्वत से शिखर पर पहुंच
जहां किसी ने ना डाली को फूट
चाहे घाव कितने ही जाए सूज
पर ना बनो तुम कभी मजदूर
बनो कुछ ऐसा शिखर
जिसे हर कोई हांसिल करना चाहे
जिसमें हर कोई बसेरा करना चाहे
ऐसा एक ख्वाब सजाओ जीवन में
उसे अपनी मजबूती बना लो
एक ख्वाब सजाओ नजमों में
उसे मुस्कान पे सजा दो
कुछ लब्ज़ चुरा लो गजलों से
उसकी कीमत चुका दो