ये मेरी जिंदगी का वो किस्सा है
ना मानते हुए भी, मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है
मेरे पुराने ज़ख्मों का एक अजीब किस्सा है
ये किस्सा है, मेरे अंजाने एहसास का
ये हिस्सा है, मेरे अनसुने ख्वाब का
ये किस्सा है, मेरी धड़कती सांस का
ये हिस्सा है, मेरे पहले प्यार का
वैसे तो हूं मैं कुछ शर्मीला
कुछ शर्मीला तो कुछ हठीला
आती थी शर्म मुझे लड़कियों से बात करने में
होती थी जीजक मुझे किसी के कंधे सिर रख सोने से
रहता था मैं अपनी ही धून में मस्त
किसी और में नहीं, अपने में ही मदमस्त
प्यार नाम के शब्द से मैं बिल्कुल अंजान था
कईं मुझे कोई भा न जाए
मेरे दिल की खिड़कियों में कोई घूस ना जाए
इसी बात को सोचने से, मैं बिल्कुल हैरान था
पर कितनी भी कोशिश करो
भले ही लाख मना करो
भले ही हजारों आनाकानी करो
पर अगर कोई लिखा होता है
तो वो बिन बुलाए आ ही जाता है
बदसूरत होते हुए भी भा ही जाता है
हो भले ही, शरीर से वो बदसूरत
लेकिन साफ दिल की होती है बडी खुबसूरत
अंजाने एहसास सी होती है, प्यार की मूरत
ये मेरे जीवन का वो पन्ना है
वो खूबसूरत सा इल्म है
बिन आकार का वो चिह्न है
अगर वो ना आती, तो शायद कोरा ही रह जाता ये पन्ना
भले ही आ जाता, मेरे पास कोई हीरा पन्ना
बिन उसके पता नहीं, कौन इस पन्ने को भर पाता
शायद उसके बिन मैं जी नहीं पाता
भले ही भाग्य हमें कितना ही तड़पाता
तो बिन करे बकवास
भले ही सुन रही हो आपकी सास
चलो लिखते हैं वो कोरा हिस्सा
कागज़ का वो अजीब किस्सा
मेरी अनसुनी कहानी का वो पहला किस्सा
ये बात है ... उस जमाने की
ये बात है ... उस दौर की
ये बात है ... उस गली की
ये बात है ... उस नुक्कड़ की
जब मैं गया था किसी रेस्टोरेंट में
खाने का लुत्फ उठाने
तब पता नहीं था, मेरे जीवन में हो जाती है एक घटना
और भर जाना है, वो कोरा पन्ना
मैं होता हूं थोड़ा जल्दी में
निकलता हूं मैं बिल चुका के वहां से
बिन पता किए जाना है कहां से
तब हो जाती है टक्कर एक लड़की से
गिर पड़ते हैं हम दोनों बड़ी जल्दी से
मांगते हैं एकदूजे से माफी
ना कोई गालियों की कहानी
अरे...? पर ये क्या...?
उसको तो मैं पहले से जानता हूं
लगा ऐसे, जैसे मैं उसे बरसों से जानता हूं
वो पढ़ती थी मेरी पाठशाला में
हम दोनों एकदूसरे को देखकर हो जातें है चकित
एकदूजे के नयनों में हो जाते हैं मोहित
दोनों देखते ही एकदूजे को पहचान जाते हैं
एक मुस्कान से बाते शुरू होती है
आंखों में जैसे शरारतों की उछलकूद होती है
पुरानी तस्वीरें फिर चमक उठती है
दिल के खेतों में हरियाली दौड़ उठती है
बिन शब्दों के भी हजारों बातें हो उठती है
वैसे तो मैं शर्मीला हूं
पर पता नहीं क्यों?
उससे बात करके ऐसा लगा
मानो, मैं सिर्फ उसीका हूं
धीरे धीरे मुझे उसमें रुची आने लगती है
जब प्यार की तितली दस्तक देने लगती है
प्यार का परिंदा अपना पर खोलने लगता है
अंजाने सफर से रुबरू होने लगता है
गिनीचुनी ख्वाहिशों में सिर रख सोने लगता है
और यूं ही बातचीतों का सिलसिला बढ़ने लगता है
तब मुझे पता चलता है
उसकी तो हो चुकी थी शादी
मैंने सोचा, गयी भैंस पानी में
अब को नहीं बन सकती, आप सबकी भाभी
पर बाद में पता चला
उसका तो हो चुका है तलाक
बिन मेरे बतलाए ही
उसने निकाल डाली सारी भड़ास
फिर हमारी बातों का एक दौर शुरू होता है
अंजान रास्तों का शोर शुरू होता है
वो हर एक छोटी बड़ी बात मुझसे साजा करती है
हर एक छोटी छोटी बात पर लड़ती जगड़ती है
उसकी यही अदा मुझे भा सी जाती है
उसकी जुल्फें मुझे सता सी जाती है
और पड़ जाता हूं मैं
उसके प्यार के चक्कर में
रोज गुजरने लगता हूं
उसकी गलियों के चक्कर से
एक वो दिन भी आ जाता है
जब हम दोनों मिलने लगते हैं
मनचाही गलियों से
दिल के पैमानों में
रोज गुजरने लगते हैं
प्यार की रोशनी में ढलने लगते हैं
उसके लिए भी मैं बन जाता हूं कुछ खास
हम दोनों के दिल में भी
एकदूजे के लिए होता है
एक अलग सा एहसास
तब मुझे ये भी पता चलता है
वो तो अभी भी सतायी जा रही है
रोज रोज के तानों भरे सूर से
पल पल सतायी जा रही है
किसीको बिन बताए रोती जा रही है
अपने आंसुओं को ढोती जा रही है
पल पल, हर पल
अपने भाग्य को वो कोसती जा रही है
बुंद बुंद पानी से समंदर
वो मेरे सामने भरती जा रही है
मैं लाख मनाने की कोशिश करता जा रहा हूं
उसको मजबूत बनाने की नींव डालता जा रहा हूं
अपने अंदर आग का दरिया बनाकर
उसे सुरक्षित बनाता जा रहा हूं
उसे उससे बाहर निकालने की
अपनी मुसीबतों का चीरहरण करने की
शेरनी सा लोगों पर गरजने की
नाकाम कोशिशें किया जा रहा हूं
पर शायद तब तक बहुत देर हो चुकी होती है
मैं गया होता हूं कहीं बाहर
पर तभी अचानक मुझे होता है एक एहसास
जैसे कोई बुला रहा हो मुझे पुकार
पर अपने काम के कारण
मैं उसे अनदेखा कर देता हूं
अपने काम में मशगुल रहने लगता हूं
पर मुझे क्या पता था?
जब मैं बाहर जाने से पहले उसे मिला था
वो हमारी आखिरी मुलाकात थी
उसके बाद तो पुरी जिंदगी
जैसे मेरे लिए काली रात थी
क्योंकि, उसकी जुबान से लेकर विचार तक
सिर्फ और सिर्फ आत्महत्या की ही बात थी
जब वो जीना ही भूल जाती है
खूबसूरत से बगीचे में खिलना भूल जाती है
और मुझे बिन बतलाए
बिन मेरे सताए
जब वो अपने मन के भवंडर में फंसी रहती है
अपनी मुसीबतों के समंदर में धंसती रहती है
तब वो इस जहान को बोल देती है ... अलविदा
जैसे बनाकर मेरी जिंदगी को ... काला टिका
फिर अंत में, बाकी रह जाता है सिर्फ दुखों का किस्सा
बंट गई हो जैसे ये जिंदगी ढेरों हिस्सों में
कर गई हो मेरी जिंदगी को सैंकड़ों किस्सों में
पर आज भी वो मुझे बहुत तड़पाती है
सपनों में आकर रोज मुझसे मिल जाती है
नींदों में आकर छेड़ जाती है
ख्वाब अधूरे रहने का अहसास करा जाती है
और हां...
आज भी मेरी दिलरुबा
मुझे बहुत याद आती है