इल्जामात तो लगते रहते हैं
तो क्या अब हम जीना छोड़ दें
अंधेरा होने के डर से
क्या अब हम दीया जलाना छोड़ दे
लोगों का काम है कहना
बेइज्जत करना, जलील करना
उन्हें करने दे
क्या लेकर आए हो इस जग में
क्या लेकर जाओगे इस जग से
उन्हें बोलने दे
उन्हें लगता है हो तुम गुनहगार
उन्हें इस बात को साबित करने में
लोगों को तुम्हारी विरुद्ध भड़काने में
तुम्हारी चुगली करने में
तुम्हें तार-तार कर देने में
समय गंवाने दे
है उनमें अगर वो हिम्मत
है उनमें अगर वो जज्बा
तो कड़वाहट के ही सही
लेकिन कड़वे दो बोल, उन्हें बोल लेने दे
यह समय का है वो पहिया
ना है कोई डरपोक चुहिया
क्यों फिक्री में तुम घबराते हो
जब बेफिक्री में तुम जी सकते हो
आज नहीं तो कल ही सही
कल नहीं तो परसों ही सही
वह पहिया वापस घूमकर
तुम पर ही वार करने वाला है
चाहे लाख बच लो तुम
लेकिन चीरहरण वो
तुम्हारा ही करने वाला है
भले ही ना हो उस पहिए में कोई शोर
चाहे लाख लगा लो तुम जोर
भले ही ना दिखाना चाहो तुम कमजोर
पर वह करके रख देगा तुम्हें जनजोर
अंदर से और बाहर से भी
वो तुम्हें हर पल सताएगा
तुम्हारी हर एक गलती का हिसाब
वो तुम्हें देखकर ही जाएगा
चाहे लाख तुम बचना चाहो
फिर से वो गलती ना दोहराना चाहो
हर एक गुनाह की माफी मांगना चाहो
सर के बल गिड़गिड़ाना चाहो
पर उसने ना कभी किसी को बख्शा है
ना कभी किसीको बख्शना चाहा है
भले ही रक्त तुम्हारा बाहर जा रहा है
भले ही रक्त तुम्हारा बाहर जा रहा है
इल्जामात तो लगते रहते हैं
तो क्या अब हम जीना छोड़ दें
अंधेरा होने के डर से
क्या अब हम दीया जलाना छोड़ दे