जब जब भी तुम मुझे रोकोगे
जब जब भी तुम मुझे टोकोगे
जब जब भी तुम मुझे हराओगे
जब जब भी तुम मुझे
वास्तविकता से अवगत कराओगे
जब जब भी तुम मुझे
मेरे ना होने का एहसास कराओगे
तब तब मैं उठूंगा
फिर उठूंगा
फिर खड़ा होऊंगा
और लगाऊंगा
एक लंबी सी छलांग
अपने लक्ष्य के प्रति
किसी शेर की भांति
और लड़ूंगा में
अपनी आखिरी सांस तक
अपने आखिरी जज्बात तक
अपने आखरी ख्यालात तक
या फिर...
एक कदम और आगे आऊंगा
बढूंगा तुम्हारी तरह
तुम्हें पाने को
वह भी दुगनी रफ्तार के साथ
और चमककर
शीतल चांद की भांति
तुम्हें शीतलता प्रदान करूंगा
या सूरज की भांति
उस नीले गगन में चमकूंगा
लेकिन...
मैं कभी भी रुकूंगा नहीं
कभी नहीं... कभी नहीं... कभी नहीं
ना हो अगर विश्वास
तो देख लो आजमाकर