बहोत सारे किरदार होंगे मेरे
तुम कौन सा देखना चाहते हो
कुछ किरदारों को मौन से छुपा लेता हूं
तो कुछ को शब्दों में उतार लेता हूं
तुम कौन सा पढ़ना चाहते हो
अगर तुम मुझ में जांकोगे
तो हीर रांझा सा नजर आऊंगा
अगर तुम मुझ में ताकोगे
तो लैला मजनू सा निखार लाऊंगा
हीर को रांझा से मिलाकर
मजनू को लैला की गोद में सुलाकर
में तो एक ही पल में ओजल हो जाऊंगा
तुम कब तक मेरे पीछे भागोगे
अगर तुम गौर से देखोगे
तो वो पहली किरण सा बन
सूरज के साथ घूमता नजर आऊंगा
अगर तुम इधर उधर ढूंढोगे
तो ठंडी सुबह की हरियाली बन
तुम्हारे कानों से होकर गुजर जाऊंगा
तुम किस रूप में मुझे देखना चाहोगे
मैं बहती नदी सा बन जाता हूं
मैं किसी सुरीली धून का पीछा कर
अंजाने रास्तों पर चल देता हूं
तो कभी कभार, अकेले ही फिसल जाता हूं
और अंत में...
एक समंदर सा बन ठहराव ला देता हूं
खुदसे खुदको ही अलग बना लेता हूं
तुम किस रूप में मुझे समझना चाहोगे
मैं कभी भी मरता नहीं हूं
मैं कभी भी जलता नहीं हूं
किसी के विचारों में
में आज भी जिंदा हूं
किसी की ख्वाहीशों में
में आज भी एक परिंदा हूं
अगर तुम कोशिश भी करो
अगर तुम अपना पुरा जोर भी लगा दो
तब भी मुझे कैद ना कर पाओगे
मैं आसानी से...
समझ में आनेवालों में से नहीं हूं
मैं आसानी से...
लोगो के साथ गुलने मिलनेवालों में से भी नहीं हूं
आखिर कार...
तुम कब तक मेरे पीछे यूं ही भागते रहोगे