किताबों के बोझ तले दबने से लगे हैं
वह सपने ही है जनाब
जो पाठशाला की चार दीवारों में
घूंटने से लगे हैं
लोग मार्क्स के लिए
अपने सपनों को छोड़ रहे
किसी और के मतलब के लिए
कभी-कभी लोग
कभी की अदाओं को भूल रहे
तो कभी-कभी लोग
चित्रकार की चित्रकारीता को भूल रहे
तो कभी फूल तोड़ने के चक्कर में
फूल की सुंदरता को छोड़ रहे
तो कभी लोगों के अच्छे कामों को
सराहना भूल रहे
वह तुमसे मिलना चाहता है
वह तुम्हें सराहना चाहता है
वह तुममें खो जाना चाहता है
वह तुममें डूब जाना चाहता है
वह तुममें मग्न हो जाना चाहता है
वह तुम्हारे दिल के दरवाजों से
होकर गुजर जाना चाहता है
पर क्या करें...?
जब जब वह तुम्हारे नजदीक आना चाहता है
तुम्हारे साथ खेलना चाहता है
तुम्हें अपना बनाना चाहता है
तब तुम कितनी आसानी से बोल देते हो
मार्क्स पर ध्यान दो
इन सब में थोड़ी ही जाया जाता है
सब यहां जा रहे, तुम्हें भी वही पहुंचना है
पर सबको जाना कहां है, वह किसीको भी नहीं पता है
उन मंजिलों, उन रास्तों से कोई भी वाकिफ नहीं है
जिसके मुताबिक जहां पहुंचकर
मानो कोई खजाना मिलनेवाला है
भले ही फिर वह कोई दस्ताना पुराना है
तब फिर कहीं जाकर
कभी जानबूझकर, तो कभी सोच समझकर
वह अपने सपनों का कातिल बन जाता है
सिर्फ तुम्हारे लिए, सिर्फ तुम्हारे लिए, सिर्फ तुम्हारे लिए
तब जाकर कहीं वह...
तुम्हारी आकांक्षाओं पर खरा उतर पाता है
किताबों के बोझ तले दबने से लगे हैं
वह सपने ही है जनाब
जो पाठशाला की चार दीवारों में
घूंटने से लगे हैं