अगर लिखना हो कुछ अनूठा, अनजाना, अलबेला सा
ख़्वाबों हकीकतों से भरा
मुकद्दर का पन्ना नया सा
तो अंधेरों से दोस्ती कर लो दोस्तों
क्यूंकि...
जो रोशनी का समंदर सीखा के नहीं जाता
वो अंधेरों से भरा भवंडर दिखा के जाता है
रोशनी तो कमबख्त नींद खोल देती है
दूसरे दिन की पोल खोल देती है
जिस ख्वाबों की परियों को में देखा करता हूं
जालिम उससे भी मुंह मोड़ लेती है
पता नहीं फिर कब रात होगी
और...
उस अधूरे पन्नों पर लिखी हुयी
कागज़ की नावों पर सैर करती हुयी
मैं अपने ख्वाबों कि महेबूबा से मिल पाऊंगा
सपनों की मल्लिका के साथ खिल पाऊंगा
उसे याद कर कुछ लिख पाऊंगा
इस उदास चेहरे पर हंसी ला पाऊंगा
कुछ अधूरी छूटी हुयी बातें कर पाऊंगा
बस यही सोचकर ये आंखे
रातों का इंतजार करती है
कुछ संदेशा ये हवाएं भी लेकर आती है
कुछ अंदेशा ये हवाएं भी देकर जाती है
चांदनी रातों में मेरे होठों पर से गुजरी वो जुल्फें
मुझे आज भी याद आती है
पर खैर...
शाम के ढलते सूरज के साथ
ख़्वाबों के बिखरे कुछ अधूरे पन्नों के हाथ
मैं और भी बहुत कुछ लिखने को तैयार हूं
क्योंकि...
ढलती रोशनी के बाद
सपनों को संवारती चांदनी के साथ
अभी भी ये पूरी रात बाकी है