अगर हम इस गीच बस्ती से दूर
इस शांत जगह पर प्रकृति का आनंद ले रहे हैं
तो कुछ तो होगा
अगर हम, हमें जहां होना चाहिए वहां पर ना होकर
प्रकृति के खूबसूरत से लम्हों का आनंद ले रहे हैं
तो कुछ तो होगा
सभी संजोग हमारी विरुद्ध होकर भी
अगर इस प्रकृति ने हमें उसकी गोद में डाल दिया है
तो कुछ तो होगा
अगर हम इस दुनिया के शोरगुल से दूर
यहां पर किसी की राह देख रहे हैं
तो कुछ तो होगा
अगर हम अपने काम के सभी टेंशन से दूर
एकदूजे की बाहों में बाहें डालकर
इस हसीन शाम में कहीं खो चुके हैं
तो कुछ तो होगा
अगर हम पैसा, नेम, फेम की सभी ख्वाहिशों से दूर
खुदके छोटे से आशियानों में खुश हैं
तो कुछ तो होगा
अगर हम, लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे
उससे करोड़ों मील दूर, यहीं पर स्थगित हो गए हैं
तो कुछ तो होगा
और मैं तो कहूंगा ...
सप्ताह में एक दिन तो ऐसा होना ही चाहिए
जहां ना कोई मोबाइल होगा, ना कोई टीवी होगा
जहां ना कोई शोर होगा, ना कोई शोरगुल होगा
कड़वाहट की जगह जहां भाईचारा होगा
और होगा, तो अपने चाहनेवालों का साथ होगा
जहां यारों दोस्तों की महेफिलें सजी होगी
और...
अगर हम सचमुच इस तरह जीवन जीना सीख गए
तो उसमें कुछ तो होगा