आज मौत से भी मोहब्बत कर ली
जब वो मुझसे मिलने आयी
आज मौत से भी शरारत कर ली
जब वो मुझसे लिपटने आयी
मानती थी वो है, सर्व शक्तिमान
नहीं है उस जितना, इस जग में कोई हैवान
पर...
वो भ्रम भी उस दिन मिट गया
जब वो मुझसे रुबरू होने चली
वो भ्रम भी उस दिन निपट गया
जब वो रोते-रोते मेरे गले पड़ चली
हुआ तो होगा उसे भी आश्चर्य उस दिन
जब में उसकी हैवानियत का जवाब
उसके इंतकाम का बिगड़ा नवाब
उसके हर एक प्रश्न का जवाब
उसने ओढ़ रखा है जो नकाब
कर रखा था मैंने अपनी इंसानियत के हवाले
इंसानियत के साथ मासूमियत के सरनामे
पर वो भी, अपनी वास्तविकता से रुबरू हो चली
जब में उसके दामन को छोड़, थोड़ी सी गुफ्तगू करने चला
जब मैंने कर दिया इनकार
उसके हर एक नियमों को मान लेने से
नहीं है मेरा कोई वास्ता
मैं ढूंढने चला खुदको तरासता
क्योंकि उसे लगता था
वो है बेहद ताकतवर
नहीं है उसके सामने
और कोई दूजा जोरावर
पर वो भ्रम भी उस दिन मिट चला
जब कोई वास्तविकता से अवगत हो चला
क्योंकि मौत तो सिर्फ शरीर का कर सकती है हनन
पर विचार तो है अनंत, जो है प्रकृति का कथन
भले ही ना मानो तुम उसके नियमों को
पर ना मानते हुए भी तुम्हें
एक दिन उसीके हवाले होना है
भले ही कितना ही गैर मानो तुम उसे
एक दिन उसीके छत के नीचे सोना है
में ये नहीं कर पाया, में वो नहीं कर पाया
में ये करना चाहता था, में वो करना चाहता था
बस इसी बात का सबका रोना है
भले जो भी किया हो तुमने जिंदगी के साथ
पर रहना है तुम्हें किसी के विचार बन
जिंदगी के साथ और जिंदगी के बाद
अगर हौंसला रखोगे तुम
नहीं रखोगे किसी गैर का जुनून
तो नहीं निकलेगा तुम्हारा जुलूस
तब जाकर कहीं आखिरी बार, बेफिक्र होकर
अपने में ही स्वस्थ और मस्त होकर
अलविदा बोल सकोगे
और निकल पड़ोगे अपने उस अंजाम तक
मौत के बाद आनेवाले पैगाम तक
तब वो भी बोल उठेगी आखिरी बार तक
उसकी अपनी आखिरी सांस तक
क्या मस्त बंदा है यार...
मैं तो खमखा उससे उलझने चली
उलझने के बजाय क्यों ना सुलझ लिया जाय
हंसते हंसते यूं ही मौत का पैगाम पहुंचा दिया जाय
और वापिस से...
अनंतता से भरे उस मोड़ पर मिल लिया जाए
आज मौत से भी मोहब्बत कर ली
जब वो मुझसे मिलने आयी
आज मौत से भी शरारत कर ली
जब वो मुझसे लिपटने आयी