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मन की गुलामी

14 August 2024 by
Jepin Tank

ये गुलामी का वो कलंक है

जो मिटते नहीं मिट पाएगा

अगर कलंक वो मिट गया

तो वो सवेरा नया लाएगा


गुलामी हो अगर शरीर से

तो वो चिड़िया बन, एक दिन उड़ जायेगी

पर गुलामी हो अगर मन से

तो वो सदियों तक, तुम में घर कर जायेगी


कितने ही लोग आए और गए इस दरियां में

कितने ही लोगों ने लहु बहाया अपने इस वतन में

कितने ही लोगों ने बेड़ियां तोड़नी चाहि अपनी मन-ए-गुलामी की

कितने ही लोगों ने जंजीरे तोड़नी चाहि अपनी मन-ए-सलामी की


कितने ही लोगों ने कोशिशें की

अपनी भारत मां की बेड़ियों को तोड़ने की

कितने ही लोगों ने लकलीफें ली

अपने इस वतन में लोगों से लोगों को जोड़ने की


आजादी के इतने साल गुजर जाने के बाद भी

75-80 सालों के ठहराव के बाद भी

इतनी कोशिशों, मिन्नतों के बाद भी


वो मन की गुलामी आज भी जिंदा है

कभी सड़क के किनारों पे

तो कभी राजमहल के जहाजों पे

वो मन की गुलामी आज भी जिंदा है


Jepin Tank 14 August 2024
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