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मन्नतें

14 August 2024 by
Jepin Tank

पता नहीं कौन सी मन्नतों में तुम मिल जाओ

पता नही कौन सी जन्नतों में तुम दिख जाओ

मैं तो हर रोज उसी मोड़ से गुजरता हूं मेरी जान

पर पता नहीं फिर तुम कब मुझमें खिल जाओ


तुम सुबह की आवाज लगती हो

मेरी आंखों की आगाज सी लगती हो

मेरी खिड़की की हवा सी लगती हो

अब तो आइनो में भी में तुम्हें देखने लगा हूं

क्योंकि तुम सुंदर ही इतनी लगती हो


किसी गाने की धुन हो जैसे तुम

किसी पंछी का सुर हो जैसे तुम

मेरे ख्वाबों का सुरूर हो जैसे तुम

अब तो पूजा भी तुम, अर्चना भी तुम

गंगा जमना सरस्वती भी हो जैसे तुम


मेरी प्रीत भी तुम हो

इन नयनों की मनमीत भी सिर्फ तुम ही हो

सांसों का समंदर भी तुम हो

आंखों का भवंडर भी तुम हो

और मेरे होठों के शब्द भी सिर्फ तुम ही हो


मेरे विचार बन मिलने आती हो जैसे मुझसे तुम

इस कलम की स्याही के रंग को निखारती हो जैसे तुम

पर किसी न किसी बहाने से मिलती रहती हो मुझसे तुम

कभी मेरे लिए तड़पती रहती हो जैसे तुम

तो कभी बिन वजह ही तड़पाती रहती हो मुझे तुम


में जब लिखने बैठता हूं

चारों ओर तुम्हें ही पाता हूं

कभी मोबाइल फोन पर

तो कभी मेरे सामने पड़ी खुरशी पर

में सिर्फ और सिर्फ तुम्हें ही पाता हूं


कभी तितली बन मुझे छूकर निकल जाती हो

तो कभी मच्छर बन मेरे नाक में दम कर देती हो

पर जो भी हो, जैसा भी हो

मुझे फक्र है इस बात का मेरी दिलरुबा

कि जितना प्यार में तुमसे करता हूं

उससे कईं ज्यादा प्यार तुम मुझसे करती हो



Jepin Tank 14 August 2024
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