ये शराफतों की गली है
यहां सपने देखना अंजाना है
भले ही सपना
वो तुम्हारा कितना ही पुराना है
यहां सपनो पर ना चलता तुम्हारा कोई जोर है
भले ही बनाता वो तुम्हें कमजोर है
क्योंकि अपनों का चलता यहां पर शोर है
तुम्हारी हर एक सांस पर सिर्फ उन्ही का वर्चस्व है
भले ही छीन लिया जाता हो तुम्हारा सर्वस्व है
कभी भावुक करके रोकर-रुलाकर
तो कभी धमकाने का धतिंग करकर
तो कभी ना अपनाने का ढोंग रचकर
वो पा लेते तुम पर अपना काबू है
और तभी लोग अक्सर हो जाते बेकाबू है
अपनों की खाल में छिपे वो भेड़िये है
भले ही वास्तव में वो डरपोक चूहिये है
तुम्हें कब उठना है, कब सोना है
तुम्हें कब जागना है, कब सपने देखना है
इन सब पर भी रखते वो अपना नियंत्रण है
भले ही बिगड़ जाता तुम्हारा रचना तंत्र है
पर इन सब से वाकिफ होकर भी वो अनजान है
अनजान ना सही, लेकिन सब के सब परेशान है
वो नहीं समझनेवाले, तुम्हारे जज़्बात को
वो नहीं डालनेवाले घास, तुम्हारे हालात को
भले ही चढ़ जाओ, तुम मृत्यु के घाट को
भले ही चढ़ जाओ, तुम मृत्यु के घाट को
ये शराफतों की गली है
यहां सपने देखना अंजाना है
भले ही सपना
वो तुम्हारा कितना ही पुराना है