वो मुलाकातें बहुत याद आती है
वो यादें आज भी तड़पाती है
जब तुम मेरी खिड़कियों से गुजरती थी
मैं तुम में डूब जाया करता था
या कहीं खुदमें ही को जाया करता था
और तुम बस मौन की चादर ओढ़े
यूं ही मुस्कुरा दिया करती थी
वो सब बातें आज भी याद आती है
वो सब यादें आज भी मुस्काती है
जब तुम मुझसे बाते करते थकती ना थी
जब हम दिन रात एकदूजे में
करवटें लिए, आहटें भरे खो जाया करते थे
और दिन कब ढल जाता था
या नया सवेरा कब आ जाता था
इन सब बातों से बेअंजान, बेखबर थे
वो सब दिन आज भी याद आते है
वो सब पुराने दिन आज भी तड़पाते है
जब मैं तुम्हें छोड़ जाया करता था
बिन वजह ही, बालकनी में झांक जाया करता था
तुम्हें याद कर लिया करता था
तुम्हारी खूबसुरत सी तसवीर देख
सुहाने से ख्वाब सजा लिया करता था
वो सब नादानियां आज भी याद आती है
वो सब महेफिलें आज भी तड़पाती है
जब तुम मेरे संग बारिशों में, भीग जाया करती थी
जब तुम मेरे रंग में रंग जाने का, जुमखा पहना करती थी
जब हम दोनो इस दुनिया से दूर
कहीं अपने में ही मशरुफ
बाहों में बाहें भरे खो जाया करते थे
उन शरारती निगाहों में डूब जाया करते थे
वो सब मौसमे आज भी याद आते है
वो सब ऋतुएं आज भी तड़पाती है
जब तुम्हारी जुल्फें मेरे मुंह से होकर
कुछ यूं ही शरमाकर, गुजर जाया करती थी
जब तुम्हारी पायल की छमछम की आवाज
मेरे कानो को सुकून दे जाया करती थी
जब हम दोनों बिन वजह ही मिल लिया करते थे
मिलकर अंजानी सी दो बातें कर लिया करते थे
वो सब दिन आज भी याद आते है
वो सब सवेरे आज भी तड़पाते है
वो हमारी आखिरी मुलाकात
जब बिन वजह ही हम बिछड़ गए थे
दिलों की धड़कनों में अल्फाज़ तो बहुत थे
पर वो अल्फाज़, कभी भी शब्द नहीं बन पाये थे
हजारों बातें होने के बावजूद
हम बिन कुछ बोले, बिन कुछ समझे
बस यूं ही अलग हो गए थे
वो सब रणजीशें आज भी याद आती है
वो सब बंदीशें आज भी तड़पाती है