एक आंख मिचौली का खेल
हम भी खेल लेते हैं
हम कभी उठे ही ना
ऐसा फिर से जी लेते हैं
अनंत से दरिया में
छोटी सी नाव में
खुद के ही हाथ में
प्रकृति के साथ में
एक बार फिर से झूम लेते हैं
ऐसा कुछ हम फिर से जी लेते हैं
क्या पता
कब वह शाम आखरी बन जाए
क्या पता
कब हमारा सूरज भी डूब जाए
छोड़ना इन सब फिक्रो को तुम
हो चलना मदमस्त बेफिक्र तुम
ऐसा एक बार फिर से खुश हो लेते हैं
ऐसा कुछ हम फिर से जी लेते हैं
छुप जाते हैं हम मौत की अंगड़ाईयों में
खो जाते हैं हम रात की तन्हाइयों में
ना कोई ख्वाहिश हो ना कोई आजमाइश हो
बस हो तो सिर्फ मौत ही हो
सोलह श्रृंगार में वो सजी हो
ऐसा एक बार हम फिर से जी लेते हैं
ऐसा कुछ हम फिर से जी लेते हैं
जीवन के उस पार वो खड़ी मिले
किसी प्रेमिका की भांति नजरें बिछाती मिले
नजरें टिकाटी मिले, नजरें झुकाती मिले
अपने होने का पूरा जोर लगाती मिले
फिर भी हंसते हंसते उससे रूबरू हो लेते हैं
ऐसा कुछ हम फिर से जी लेते हैं