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प्रेमरंग

14 August 2024 by
Jepin Tank

तेरी ये अदृश्य सुगंध मुझे छेड़ जाती है

तेरी ये मन मोहक गंध मुझे तुम में समा जाती है


समाकर मिला भी जाती है और मिलाकर भ्रमित भी कर जाती है

तुम्हारी ये प्रेम की खुशबू मुझे सत्ताकर चली जाती है


तूं जब मेरे बंद पड़ गए दिल को धड़काती हो

मुझे तुम्हारे हाथों के स्पर्श द्वारा आगे बढ़ाती हों


तब मुझ पर मेरा काबू ही खो जाता है

जिसकी वजह से मेरा पाचन तंत्र भी उलझ जाता है


तेरी उन आँखों में जैसे कुछ जादू है

तेरी वो पतली कमर जैसे बेकाबू है


मेरा तेरी वजह से ध्यान भटक जाता है

तेरे ख्वाबों में ये पागल दीवाना खो जाता है


जब तुम एक मुस्कान बन होंठों पर आती हो

जब मेरे हाथ की उंगलियाँ तेरे हाथों की उंगलियों से स्पर्श कराती हो


तब जैसे मैं इस दुनिया से कहीं दूर चला जाता हूँ

तेरे और मेरे लग्न जीवन में कहीं खो जाता हूँ


जब बरसात की बूंदें तेरे तन बदन को महकाती है

जिसकी महक मेरे रोम रोम को घायल कर तड़पाती हैं


तब न मुझे दिन के उजाले में कुछ पसंद आता है

न रात के अंधेरे में मैं कुछ सोच पाता हूँ


हम दो तन में से एक तन बनकर

मंत्रमुग्ध बना देने वाली प्रेम की इस धुन को सुनकर

बाँहों में बाहें डालकर, एक दूजे का साथ देकर

पता नहीं कब बिताएंगे ऐसे खूबसूरत लम्हों को साथ रहकर


उसी की राह देखता हुआ, उसी का जवाब ढूंढता हुआ

पता नहीं कब से जगा हुआ हूँ

तुम्हारी ही राह में, तुम्हे ही पानी की चाह में

पता नहीं कब से भाग रहा हूँ


तुम ही अब मंजिल लगती हो

तुम ही अब इमारत लगती हो

तुम ही अब कुदरत की इबादत लगती हो


जिसकी सलामती की दुआ मैं रोज़ करा करता हूँ

तुम जहाँ से रोज़ गुजरती हो

जहाँ से तुम्हारी खुशबू का अहसास कराती हो


उस बगीचे का सबसे सुंदर फूल मैं ढूंढता रहता हूँ


सिर्फ इस जन्म में ही नहीं


बल्कि हर एक जन्म में सिर्फ तुम्हे ही पाने की चाहत

अपने अंदर पालता रहता हूँ


क्योंकि तुम्हें शायद पता नहीं होगा पर

तुम्हारी खिड़की की वो सुंदर तितली बन

मैं ही तुम्हे ख्वाबों में रोज सताया करता हूँ


Jepin Tank 14 August 2024
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