तेरी ये अदृश्य सुगंध मुझे छेड़ जाती है
तेरी ये मन मोहक गंध मुझे तुम में समा जाती है
समाकर मिला भी जाती है और मिलाकर भ्रमित भी कर जाती है
तुम्हारी ये प्रेम की खुशबू मुझे सत्ताकर चली जाती है
तूं जब मेरे बंद पड़ गए दिल को धड़काती हो
मुझे तुम्हारे हाथों के स्पर्श द्वारा आगे बढ़ाती हों
तब मुझ पर मेरा काबू ही खो जाता है
जिसकी वजह से मेरा पाचन तंत्र भी उलझ जाता है
तेरी उन आँखों में जैसे कुछ जादू है
तेरी वो पतली कमर जैसे बेकाबू है
मेरा तेरी वजह से ध्यान भटक जाता है
तेरे ख्वाबों में ये पागल दीवाना खो जाता है
जब तुम एक मुस्कान बन होंठों पर आती हो
जब मेरे हाथ की उंगलियाँ तेरे हाथों की उंगलियों से स्पर्श कराती हो
तब जैसे मैं इस दुनिया से कहीं दूर चला जाता हूँ
तेरे और मेरे लग्न जीवन में कहीं खो जाता हूँ
जब बरसात की बूंदें तेरे तन बदन को महकाती है
जिसकी महक मेरे रोम रोम को घायल कर तड़पाती हैं
तब न मुझे दिन के उजाले में कुछ पसंद आता है
न रात के अंधेरे में मैं कुछ सोच पाता हूँ
हम दो तन में से एक तन बनकर
मंत्रमुग्ध बना देने वाली प्रेम की इस धुन को सुनकर
बाँहों में बाहें डालकर, एक दूजे का साथ देकर
पता नहीं कब बिताएंगे ऐसे खूबसूरत लम्हों को साथ रहकर
उसी की राह देखता हुआ, उसी का जवाब ढूंढता हुआ
पता नहीं कब से जगा हुआ हूँ
तुम्हारी ही राह में, तुम्हे ही पानी की चाह में
पता नहीं कब से भाग रहा हूँ
तुम ही अब मंजिल लगती हो
तुम ही अब इमारत लगती हो
तुम ही अब कुदरत की इबादत लगती हो
जिसकी सलामती की दुआ मैं रोज़ करा करता हूँ
तुम जहाँ से रोज़ गुजरती हो
जहाँ से तुम्हारी खुशबू का अहसास कराती हो
उस बगीचे का सबसे सुंदर फूल मैं ढूंढता रहता हूँ
सिर्फ इस जन्म में ही नहीं
बल्कि हर एक जन्म में सिर्फ तुम्हे ही पाने की चाहत
अपने अंदर पालता रहता हूँ
क्योंकि तुम्हें शायद पता नहीं होगा पर
तुम्हारी खिड़की की वो सुंदर तितली बन
मैं ही तुम्हे ख्वाबों में रोज सताया करता हूँ