चलो आज कुछ नया लिखते है
कुछ नए सिरे से लिखते है
थोड़ा धीरे से लिखते है
बातें तो वही पुरानी हो
लेकिन चाहतें वो नयी हो
ऐसा कुछ बनकर लिखते है
जो तुम्हारे लिए अंजाना सा हो
लेकिन तुम उससे अंजान ना हो
जो तुम्हारे लिए अनदेखा सा हो
लेकिन तुम उसे नजर अंदाज ना कर पाओ
ऐसा कुछ पुराने पन्नो पर
पुरानी यादों को नई यादों से जोड़कर
पुराने किरणों को आज के रवि से मिलाकर
थोड़ा बहुत उसे आजमाकर
तो थोड़ा बहुत जांच परखकर
उसी जगह नए अंदाज से लिखते है
जो जिंदगी की रीत सिखलाये
जो कुछ नई बात बतलाये
जो यादों में याद बन जाए
जो तुम्हारे अंदर सिमट जाए
ऐसा कुछ ताम्रपत्तों पर लिखते है
ऐसा कुछ ताम्रपत्तों पर लिखते है
भले ही पन्ने वो पतझड़ के हो
लेकिन मौसम वो पतझड़ से परे हो
बचपन के वो खेल भले ही पुराने हो
लेकिन ज़िंदगी के इस खेल में बिलकुल नए हो
भले ही वो खेल तुमने खेल रखे हो
लेकिन इन खेलों में तुम्हारे लिए जितना
या किसी को भी हरा पाना
नामुमकिन सा लग रहा हो
ऐसा कुछ बनकर लिखते है
चाहे हम कुछ भी बने...या किसी को भी बनाए
चाहे तो तलाब की सबसे बड़ी मछली भी हम हो
और तालाब की सबसे छोटी मछली भी हम खुद ही हो
कोई बड़ा सा हवाई जहाज भी हम हो
और उसका छोटा सा पहिया भी हम खुद ही हो
विधी का विधाता भी हम हो
और विधी का घटनेवाला विधान भी हम ही हो
चाहे तो समय भी हम बन जाए
या बिन समय हमारा वजूद ना मिट पाए
या अगर वजूद मिट भी जाए
तो बिन समय सवेरा वो नया लाए
जहां पर भ्रम भी हम हो
और वास्तविकता भी हम खुद ही हो
जहां पर आंख भी हम हो
और नम आंखों से बहनेवाले
अश्रु की धारा भी हम खुद ही हो
क्योंकि वहां सिवा हमारे शायद कोई ना हो
बिन हमारे वहां हमारा वजूद ना हो
हो, तो बस मुलाकाते हो
जिससे तुम कब से अनजान हो
हम चाहे ना चाहे
बिन खुद के सिवा
किसी और से
मिल ना पाए
या अगर गलती से
मिल भी बैठे
तो वहां से लौटकर
कभी वापिस ना आ पाए
ऐसा कुछ बनकर लिखते है
ऐसा कुछ बनकर लिखते है
चलो आज कुछ नया लिखते है
कुछ नए सिरे से लिखते है
थोड़ा धीरे से लिखते है
बातें तो वही पुरानी हो
लेकिन चाहतें वो नयी हो
ऐसा कुछ बनकर लिखते है