हा, सही है ये...
तुम मेरे हाथों को काट सकते हो
पर वो हथियार कहां से लाओगे
जो मेरे होंसलों को काट सके
हा, सही है ये...
तुम मेरे पैरों को काट सकते हो
पर वो शस्त्र कहां से लाओगे
जो मेरे इरादों को काट सके
हा, सही है ये...
तुम मेरी आंखों को फोड़ सकते हो
पर वो नजराना कहां से लाओगे
जो मेरी बुलंदी को फोड़ सकते
हा, सही है ये...
तुम मुझे बेजुबान बना सकते हो
पर वो आवाज़ कहां से लाओगे
जो मेरी कामियाबी को चुप करा सके
क्योंकि, आज मेरे पास वो सब कुछ है
जिससे अब तक तुम वाकिफ नहीं
अभी तो तुमने मुट्ठी भर रेत को ही तो नापा है
कहीं पूरा आसमान नापना अभी बाकी तो नहीं?
ये कोई कविता नहीं, ना कोई शायरी है
ये तो अल्फाज में लिपटा हुआ एक पन्ना है
फिर भी मैं तुम्हें मजबूत बना सकूं
सच सच बताना एक बात...
क्या मेरे शब्दों में इतनी ताकत भी नहीं?