कुछ यादें हैं
इन हवाओं के पास
कुछ शरारतें उधार है
इन खफाओं के पास
कह दो इन हवाओं को
बुला लो सभी मेहमानों को
कुछ हिसाबो को चुकता करना है
तो कुछ को उधार रखना है
ये वो आशियाने है, ये वो रास्ते है
ये वो मंजिले है
जहां से चहककर, चहचहाकर
में रोज गुजरा करता था
जो मेरा गुजरा हुआ कल था
मेरे बचपन का फितूर था
मेरे आनेवाले कल का सिंदूर था
मेरे उजले भविष्य का सुकून था
बहुत सारे खेल खेले है यहां
तो बहुत सारे फूलों को खिलाया भी है यहां
कक्का से लेकर ज्ञ तक का ज्ञान पाया है यहां
छोटे से बच्चे को बड़ा होता पाया है यहां
यही तो मेरे दिल का सुकून है
यही मेरे रग में बसता जुनून है
मानो, प्रकृति का एक अलग ही खून है
जब में इनके करीब होता हूं
तब सब गिनती में भूल जाता हूं
इन प्रकृति में, मैं इतना खो जाता हूं
ताउम्र, बस यही बसने का शौख पाल लेता हूं
गुजारिश करता हूं
ये वक्त बस यहीं रुक जाए
ये सुनहरा वक्त, बस यही थम जाए
बेवक्त यहां कोई ना आने पाए
और अगर आ भी जाए
तो वो इन हवाओं में, इन मौसमों में
इतना खो जाए, कि कुछ बोल ही ना पाए
इसी कोयल की आवाज में खो जाने का मन करता है
इसी पंछियों की धून, बन जाने का मन करता है
मन करता है...
ये दुनिया बस यही रुक जाए
ये दुनिया बस यही थम जाए
अब तो उन्हीं के साथ उड़ जाने का मन करता है
किसी ख्वाबों की परी से मिलने का दिल करता है
ख्वाबों में ख्वाब बन, बिखरकर तूटने का मन करता है
खफाओं से रूठकर उन्हें मनाने का जी करता है
काश...
मेरे साथ, मेरी धड़कनों में बसनेवाली
मेरी महरूम, मेरी माशूका
तुम भी यहां मेरे साथ, मेरे पास होती
किसी की धड़कन में धड़कन बन धड़कती
किसी कवि की कविता में कविता बन निखरती
मेरे कंधे पर सिर रख
प्रकृति के साथ दो पल बिताती
जब हम मौन बन एकदूजे से बातें किया करते
किसी गायक की धून का राग आलापते
बातें लबों से गुजरकर आंखों से बाहर निकला करती
और तब अचानक...
बिन मौसम ही बारिश आ जाती
उस बारिश में हम दोनों एक दूसरे में को जाया करते
तुम्हारे पायल की खनखन की वो मधुर आवाज सुना करते
आनेवाले कल की चिंताओं से दूर खड़े रहते
सूरज ढलने तक, बस यहीं बैठे रहते
में तुम्हें कविताएं सुनाया करता
और तुम उन कविताओं के शब्दों से होकर गुजर जाया करती
हम दोनो बस यूं ही मग्न होकर सो जाया करते
या एकदूजे की भावनाओं में को जाया करते
या फिर...
भूतकाल में जाकर तुम मुझे पुकारती
में बेशब्द बनकर तुम्हें निहारता रहता
या तुम्हें नकाब ओढ़े पुकारता रहता
या फिर...
भूतकाल की याद बन तुम हवा हो जाती
बिन गुनाह की ये मेरे लिए सजा हो जाती
इसलिए काश तुम मुझे अभी मिल पाती
अगर मिल जाओ तुम अभी...
तो में एक बात बतलाना चाहता हूं
पिछली बार की मुलाकात याद करवाना चाहता हूं
तुम्हें सात समंदर पार से खींच लाना चाहता हूं
या थोड़ी सी नादानियों के साथ
तुम्हारे साथ वहीं आकर बस जाना चाहता हूं
या फिर, पिछली बार की तरह
धीरे-धीरे तुम्हारी आंखों से दूर हो जाना चाहता हूं
पर...
जो दूर होकर भी पास होने का अहसास करवा जाए
में ऐसा कुछ एक बार फिर से जी उठना चाहता हूं