शायद सही कहा तुमने
हमने औकात से बड़ा सपना देख लिया था
इसलिए तुम सब ने मिलकर
हमारे पैरों को काट दिया था
भूल गए थे हम गरीब थे
गलती से घुसपैठ कर बैठे थे
हर रोज नए नए कपड़े पहनना
अच्छी-अच्छी जगह घूमने जाना
इस सब पर तो तुमने ही काबू कर रखा था
पर हमें तो ख्वाबों ने बेकाबू कर रखा था
भूल गए थे हम
हमारी औकात कीड़ों मकोड़ों की है
तुम तक पहुंचते-पहुंचते
हमारी कमर घिस जानेवाली है
हमें पहले भी कुचला जाता था
आज भी कुचला जाता है
कभी धर्म की नींव डालकर
तो कभी जात-पात का हथियार बनाकर
हमें मूर्ख समझा जाता है
भले ही देश कितना भी आगे बढ़ गया हो
मंगल तक सफर करने का ख्वाब बन गया हो
चांद में बसर करने का सपना सज गया हो
फिर भी बरसों से तुम हमें दबाते आ रहे हो
हम जहां देख भी ले
उसे तुम कलंकित मान लेते हो
जैसे इज्जत तो सिर्फ तुम्हारी ही होती है
इस तरह से हमें भरे बाजार में नीलाम कर देते हो
सर उठा कर बात करने पर
बीच सड़क में सर धड़ से अलग कर देते हो
कभी शब्दों के बाण से
तो कभी नयनों के तीर से
तो कभी कड़वी जुबान से
तुम हमें जानवरों से भी बदतर समझते हो
चाहे हम कितने ही आगे बढ़ जाए
कितना ही बड़ा हौदा हांसिल कर जाए
चाहे अपने सपने के लिए मर मिट जाए
फिर भी तुम हमेशा हमारी औकात याद दिला जाते हो
हमारे पूर्वजों का झांसा देकर हमें फंसा जाते हो
सही है...
करते रहो तुम अपनी मनमानी
भले ही करते रहो तुम शैतानी
लगा लो अपना आधे से पूरा जोर
पर एक ऐलान हम आज ही कर जाते हैं
थोड़ी बहुत हिम्मत हम आज ही जुटा लेते हैं
अब और न सहा जाएगा
और ना तड़पा जाएगा
हमारी औकात का राग
अब और ना आलापा जाएगा
हमारी सूरत का सूर
अब और ना परोया जाएगा
चाहे तुम्हें पसंद हो या ना हो
तुम अपना पूरा जोर ही लगा लो
चाहे तुम्हारी अंतर्दियां ही
क्यों ना बाहर आ जाए
पर अब ख्वाब भी पूरा होगा
सपना भी हकीकत होगा
तुम्हारे मोहल्ले से भी आना जाना होगा
तुम्हारी गलियों से भी गुजरना होगा
तुम्हारे आंगन से भी पैर पसारना होगा
खुली हवा में सांस लेना होगा
और हमारी जीत का ताज...
तुम खुद अपने हाथों से पहनाओगे
गाथा तुम हमारी लिख जाओगे
लफ्ज़ हमारे कह जाओगे
गीत हमारा गुनगुनाओगे
तारीफ हमारी कर जाओगे
और अंत में तुम ही...
हमें अमर बना जाओगे
हमें अमर बना जाओगे
हमें अमर बना जाओगे