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ठहराव

14 August 2024 by
Jepin Tank

जब आंखों से समंदर बहने को उतारू हो

अंदर सिमटे जज्बात बाहर निकलने को बेकाबू हो

सांसें भी जब नियती से लड़ने को जुजारू हो


और तब अचानक...

कोई तुम्हारे लबों के गुंगरू को रौंदता हुआ चला जाए

वो लब्ज़ सुनकर भी लोग अनसुना कर दे

तब तुम ही बताओ, क्या किया जाए


उस अधूरे पन्ने पर नियती की स्याही से दोबारा लिखा जाए

या उस पन्ने को जलाकर, उसकी राख को सीने में दबाकर

एक नया पन्ना, नए सिरे से लिखना शुरू किया जाए

क्या किया जाए, क्या किया जाए, क्या किया जाए


जब तुम्हारा अकेलापन गुमनामी में सिमट रहा हो

तुम बेबसी की चादर ओढ़े बस यूं ही बैठे हो

मौत की भीख मांगने पर विवश हो रहे हो


और तब अचानक

कोई तुम्हारी बेबसी का फायदा उठाकर चला जाए

तुम्हारे होते हुए भी न होने का अहसास करा जाए

तब तुम ही बताओ, क्या किया जाए


उन आसुओं के मोती के सहारे पूरी जिंदगी निकाल दी जाए

या आंसुओ को समेटकर, उसे कुछ माटी के अल्फाज देकर

एक नया अध्याय, नए सिरे से लिखना शुरू किया जाए

क्या किया जाए, क्या किया जाए, क्या किया जाए


पर कर भी क्या सकते हैं

बस काजग के ख्वाब थे,

बिखर कर टूट गए, ऐसा दिलासा दे सकते हैं

और उन आसुओं को पीकर उसकी स्याही बनाकर

एक नई कहानी, नई जुबानी, परियों सी रानी को

पलकों पर बिठाकर ख्वाब सजा सकते हैं


या फिर

घंटो तक इस दुनिया से दूर, अपने में ही मशरूफ

अपने ही विचारों के साथ, कलम और स्याही के हाथ

कुछ देर तक ठहर सकते हैं

हां, ठहर सकते हैं, ठहर सकते हैं, ठहर सकते हैं

Jepin Tank 14 August 2024
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