उसकी आंखें कुछ कहना चाहती थी
अपने सभी दर्द को वो आज बयां करना चाहती थी
लेकिन कभी वो उससे कह नहीं पायी
और कहती भी कैसे...?
उसकी आंखों में किसी को खो देने का डर
साफ तौर पर झलक रहा था
अगर वह उसकी ना हो पायी
तो उस इंसान का क्या होगा
वो चिंता उसे सताई जा रही थी
जिससे बात करके वह थकती ना थी
उससे भी अब उसने दूरियां बना ली थी
शायद यह सोचकर कि
हो सकता है अभी उसे तकलीफ हो
लेकिन उससे बिछड़ने में ही उसकी भलाई थी
वो उससे दूर चली जा रही थी
उस इंसान की भलाई के लिए,
वो उससे तू...तू में...में करने को भी तैयार थी
ता कि वो इंसान स्वयं ही
उससे तंग आकर उसे छोड़ दे
उसे ठुकरा कर आगे बढ़ जाए
वो उस इंसान से मोहब्बत तो बेहद करती थी
लेकिन शायद कहने से डरती थी
शायद उसे डर था कि...
उसे तो लोगों ने ठुकरा दिया
लेकिन क्या कभी कोई दूजा उसे अपनाएगा
जो उसे उन सभी तकलीफों से आजाद कर देगा
जिससे वो पिछले कुछ सालों से गुजरी थी
एक बार धोखा खाने के बाद
क्या उसे अब किसी दूसरे पर भरोसा करना चाहिए
यह बात वो बार-बार,
मन ही मन गुनगुना रही थी
और यह सभी बातें उसकी आंखों में साफ तौर पर झलक रही थी
क्योंकि उसे अपने दर्द को छुपाना आता ही ना था
चाहे लाख कोशिश कर ले वो
लेकिन अपनी भावनाओं को छुपाना उसे आता ही नहीं था
और उस इंसान के सामने
जो उसे बेहद मोहब्बत करता था
उसके सामने तो बिल्कुल नहीं...