वर्चस्व की है ये लड़ाई
में महान या तुम
इसी बात की है ये सफाई
इस वर्चस्व की आड़ में
लोग पयगंबर बनना भूल रहे
इस पयगंबर को भूल
लोग आडंबर करना चाह रहे
चाहो तो खुदा कह लो
चाहो तो ईश्वर कह लो
चाहो तो ईशु कह लो
चाहो तो रब कह लो
सब लोग है तो एक ही माटी के दीये
ना सिखाता कोई बैर पालना
ना सिखाता कोई जैर उगलना
क्योंकि वो भी जानते है
वो भी मानते है
वो जैर है सापों से भी पुराना
उनकी बदौलत ना मिल पायेगा
तुम्हें अपना आशियाना अंजाना
इन जेर को उगलकर लोग अपना वजूद पाल लेते
इससे तो बेहतर तुम अनाकोंडा संभाल लेते
जो आ जाता है इनके चक्करों में
गोते लगाता है इनके भवंडरों में
वो कभी ना कभी रूबरू हो ही जायेंगे
इस बात का किसी को पता नहीं, ठिकाना नहीं
लेकिन बेशक, वो उड़ जाता है अपने ही सपनों से
बिछड़ जाता है वो अपने ही अपनों से
क्योंकि ये वो डर है
जिससे आज तक कोई ना बच पाया है
और जो बच गया है
वो फिर जी नहीं पाया है
बनना है अगर तुम्हें महान
भले ही बसता हो तुममें कोई शैतान
तो इन लोगों से पाला पाल लो
तो खुदको तोपों से उड़ा लो
पता चल जायेगी तुम्हें सत्य हकीकत
भले ही सदियों से चली आ रही हो
"वसुधैव कुटुंबकम्" की कहेवत
अब तुम जीतकर भी हार चूके हो
भले ही तुम खुदको संभाल चूके हो
पर जब तुम सत्य को जान लेते हो
तब तुम किसी वारदात को अंजाम देते हो
ये ज्ञानियों की दुनिया है
यहां सबको ज्ञान बांटना है
पर उन ज्ञान में छुपे मकसद को
पहचानना उन्हें कहां आता है
अगर जान गए तुम उस मकसद को
तो तुम मान नहीं सकते गैर किसी को
ना ही तुम अपनों में अपनापन ढूंढोगे
ना ही गैरों में तुम गैरपन देखोगे
उसके बाद रह जायेगा एक ही सवालात
तुम क्या, कब, कैसे, क्यूं कर रहे हो
इसी बात का सत्य ढूंढने में
तुम डूबे रहोगे पूरी 'हवालात'
क्योंकि ...
सवालात का जवाब तो हर किसी के पास मिल जायेगा
पर सवालात का सवाल बहुत कम के नसीब में होगा
पर अगर ढूंढ़ पाए तुम, सवालात के सवालों को
हवालात के अहेवालों को
तो वो तुम्हें कुछ देकर जायेगा
थोड़ा बहुत तुम्हें सताकर जायेगा
जो तुम्हें अंदर-बाहर से झकझोर कर रख देगा
और कुछ नायाब देकर तुमसे दूर चला जायेगा
वर्चस्व की है ये लड़ाई
में महान या तुम
इसी बात की है ये सफाई