कांच का दरिया बन
पानी का जरिया बन
ये साल भी बह गया
कुछ यादों के साथ
कुछ अनुभवों के हाथ
ढलती शाम के साथ
ये साल भी ढह गया
बहुत कुछ सिखाकर गया ये साल
बहुत कुछ बताकर गया ये साल
कुछ कड़वी यादों को
कुछ मीठी यादों से ध्यूमिल करके गया ये साल
और अपने आनेवाले कल के लिए
तैयार कर के गया ये साल
जो कभी कटाक्ष किया करते थे
जो कभी मुझे नाकारा बोला करते थे
जो कभी मेरी बुराई करके थकते न थे
उनके मुंह से भी अपनी तारीफें सुनवाकर गया ये साल
जिनकी नजरों में मैं कुछ नहीं था
जिंदा लाश के अलावा
जिन्होंने कभी मुझे कुछ समझा न था
लावारिश कहकर जो अपना जोर आजमा चुके थे
उनके मुंह से भी गुणगान बुलवाकर गया ये साल
सुबह के बाद शाम होना तय है
शाम के बाद का सवेरा भी तय है
कुछ भी यहां पर हमेशा के लिए नहीं है
सपनों पर बसेरा करने के लिए नहीं है
ये भी धैर्य के साथ सिखाकर गया ये साल
जो मुझसे दूरियां बनाकर रखा करते थे
उनके रुख भी अब मुड़ने से लगे है
जो कभी दस्तक देते ना थे दहलीज पर
वो भी अब दरवाजा खटखटाने से लगे है
ना खोलूं दरवाजा अगर मैं
तो मेरा इंतजार भी वो अब करने से लगे हैं
क्योंकि वो भी मुझे देख
कुछ ख्वाब बुनने से लगे हैं
उनकी आंखों में भी
कुछ सपनें पनपने से लगे हैं
समय बदलता जरूर है
समय पनपता जरूर है
इंसान भी पलटता जरूर है
ऐसे कुछ अनुभवों से
रूबरू मिलाकर गया ये साल
डर के साथ आंख मिचौली कैसे खेलनी है
अब तो मेरी पागलपंती ही मेरी शेरनी है
चाहे जो भी हो जीवन में
अनुभवों के वीरान रण में
पर जिंदगी की ये जंग मुझे अकेले ही लड़नी है
इस बात का एहसास करवाकर भी गया ये साल
और अंत में
अपने सबसे बड़े डर से सामना कैसे करना है
या तो जीना है, या फिर सिद्धत के साथ कैसे मरना है
ऐसे कुछ अतरंगी अनुभव भी देकर गया ये साल
शरुआत भले ही दर्दनाक रही हो
लेकिन अंत में सब कुछ सही करके गया ये साल